1. समाजशास्त्र की प्रमुख धाराएँ (Major Branches of Sociology)
व्याख्या:
समाजशास्त्र में विभिन्न प्रमुख धाराएँ हैं, जिनमें प्रत्येक का अपना दृष्टिकोण और अध्ययन क्षेत्र है। इनमें से कुछ प्रमुख धाराएँ हैं: कार्यात्मकता, संघर्षवाद, और प्रतीकात्मक अंतरक्रिया (Symbolic Interactionism)।
महत्वपूर्ण प्रश्न:
- समाजशास्त्र की कार्यात्मक दृष्टिकोण (Functionalism) की व्याख्या करें।
- उत्तर: कार्यात्मक दृष्टिकोण के अनुसार, समाज के विभिन्न भाग एक दूसरे के साथ सामंजस्यपूर्ण रूप से काम करते हैं, जिससे समाज में स्थिरता और व्यवस्था बनी रहती है। प्रमुख विचारक: एमेइल डर्कहेम और ताल्कोट पार्सन्स।
- संघर्षात्मक दृष्टिकोण (Conflict Theory) को स्पष्ट करें।
- उत्तर: संघर्षात्मक दृष्टिकोण के अनुसार, समाज में विभिन्न वर्गों के बीच संघर्ष होता है, और यह संघर्ष सामाजिक बदलाव का कारण बनता है। प्रमुख विचारक: कार्ल मार्क्स और मैक्स वेबर।
2. संस्था और सामाजिक संस्थाएँ (Institutions and Social Institutions)
व्याख्या:
सामाजिक संस्थाएँ समाज के ढांचे का अहम हिस्सा होती हैं। ये व्यक्तियों और समूहों को समाज में व्यवस्थित रूप से कार्य करने के लिए दिशा प्रदान करती हैं। प्रमुख संस्थाएँ हैं: परिवार, शिक्षा, धर्म, राजनीति, और अर्थव्यवस्था।
महत्वपूर्ण प्रश्न:
- परिवार को सामाजिक संस्था के रूप में समझाएं।
- उत्तर: परिवार समाज की सबसे बुनियादी संस्था है, जो व्यक्तियों को सामाजिकरण (socialization) के प्रक्रिया से गुजरने का अवसर देती है। परिवार का समाज में सुरक्षा, देखभाल और प्यार प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान है।
- धर्म और राजनीति को सामाजिक संस्थाएँ के रूप में समझाएं।
- उत्तर: धर्म समाज में मूल्य और विश्वासों को निर्धारित करता है, जबकि राजनीति समाज में शक्ति और शासन की व्यवस्था को तय करती है। दोनों ही संस्थाएँ समाज में समाजिक नियंत्रण और व्यवस्था बनाए रखने में मदद करती हैं।
3. सामाजिक सैद्धांतिक दृष्टिकोण (Sociological Theoretical Perspectives)
व्याख्या:
समाजशास्त्र में विभिन्न सैद्धांतिक दृष्टिकोण हैं, जिनके माध्यम से समाज और उसके घटकों को समझने का प्रयास किया जाता है। प्रमुख दृष्टिकोणों में कार्यात्मकता, संघर्ष और अंतरक्रियावाद शामिल हैं।
महत्वपूर्ण प्रश्न:
- सामाजिक परिवर्तन के संबंध में कार्यात्मक दृष्टिकोण की व्याख्या करें।
- उत्तर: कार्यात्मक दृष्टिकोण के अनुसार, समाज में परिवर्तन तब होता है जब सामाजिक संस्थाएँ या व्यवस्था अस्थिर हो जाती हैं। यह परिवर्तन धीरे-धीरे और स्वाभाविक रूप से होता है।
- संघर्षात्मक दृष्टिकोण के अनुसार, समाज में परिवर्तन कैसे होता है?
- उत्तर: संघर्षात्मक दृष्टिकोण के अनुसार, समाज में बदलाव असमानताओं और संघर्षों से उत्पन्न होता है। जब एक वर्ग अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करता है, तो यह बदलाव और विकास की प्रक्रिया को गति देता है।
4. सामाजिक असमानताएँ और भेदभाव (Social Inequalities and Discrimination)
व्याख्या:
सामाजिक असमानताएँ और भेदभाव समाज में विभिन्न समूहों के बीच असमान संसाधन वितरण और अधिकारों में भेदभाव को दर्शाती हैं। इसमें आर्थिक असमानता, जातिवाद, लिंग भेदभाव और धार्मिक असमानता शामिल हैं।
महत्वपूर्ण प्रश्न:
- जातिवाद और वर्ग असमानता के बीच अंतर स्पष्ट करें।
- उत्तर: जातिवाद एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में भेदभाव है, जहां जातियों के आधार पर अधिकारों और अवसरों में भेद किया जाता है, जबकि वर्ग असमानता आर्थिक स्थिति के आधार पर होती है।
- लिंग भेदभाव के सामाजिक प्रभावों को स्पष्ट करें।
- उत्तर: लिंग भेदभाव महिलाओं और पुरुषों के बीच असमानता को बढ़ावा देता है, जो महिलाओं की शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक स्थिति में रुकावट डालता है। यह समाज में पुरुष प्रधान मानसिकता को भी बढ़ावा देता है।
5. सामाजिक परिवर्तन (Social Change)
व्याख्या:
सामाजिक परिवर्तन वह प्रक्रिया है जिसमें समाज में संरचनात्मक, सांस्कृतिक, और सामाजिक बदलाव होते हैं। यह परिवर्तन बाहरी (जैसे तकनीकी विकास) और आंतरिक (जैसे सामाजिक संघर्ष) कारणों से हो सकता है।
महत्वपूर्ण प्रश्न:
- सामाजिक परिवर्तन के कारण क्या हैं?
- उत्तर: सामाजिक परिवर्तन के कारणों में तकनीकी उन्नति, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, समाजिक आंदोलनों, और वैश्वीकरण शामिल हैं।
- सामाजिक परिवर्तन का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- उत्तर: सामाजिक परिवर्तन के प्रभाव से समाज में नए मूल्य, विश्वास, और सामाजिक संरचनाएँ उत्पन्न होती हैं, जो समाज की कार्यप्रणाली और संस्कृति को बदल देती हैं।
6. धार्मिक समाजशास्त्र (Sociology of Religion)
व्याख्या:
धार्मिक समाजशास्त्र समाज में धर्म के प्रभाव और कार्यों का अध्ययन करता है। यह यह देखता है कि धर्म कैसे समाज की संरचना, संस्कृति, और सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करता है।
महत्वपूर्ण प्रश्न:
- धर्म का समाज में क्या स्थान है?
- उत्तर: धर्म समाज में व्यक्तिगत और सामूहिक आस्थाओं का रूप होता है, जो व्यक्तियों को नैतिकता, मूल्य और विश्वास प्रदान करता है। यह समाज के भीतर आदेश और व्यवस्था बनाए रखने में मदद करता है।
- धर्म और समाज में रिश्ते को कैसे समझा जा सकता है?
- उत्तर: धर्म और समाज के बीच गहरा संबंध होता है। धर्म समाज में सामूहिक विश्वास और सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखता है, जबकि समाज धर्म के ढांचे और व्याख्याओं को प्रभावित करता है।
7. शहरी समाजशास्त्र (Urban Sociology)
व्याख्या:
शहरी समाजशास्त्र शहरी जीवन, शहरीकरण, और शहरी समाज की संरचनाओं और समस्याओं का अध्ययन करता है। इसमें शहरों का सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है।
महत्वपूर्ण प्रश्न:
- शहरीकरण और उसके सामाजिक प्रभावों को समझाएं।
- उत्तर: शहरीकरण का मतलब है गाँवों से शहरों की ओर लोगों का प्रवास। इसके परिणामस्वरूप शहरी समाज में सामाजिक असमानताएँ, रोजगार की समस्याएँ, प्रदूषण और आवासीय संकट उत्पन्न हो सकते हैं।
- शहरी समाजशास्त्र में ‘सामाजिक विकृति’ (Social Deviance) को समझाएं।
- उत्तर: सामाजिक विकृति वह व्यवहार है जो समाज के स्थापित मानकों और नियमों के खिलाफ होता है। यह शहरी समाज में बढ़ती हुई असमानताओं और अपराधों के कारण उत्पन्न हो सकता है।
8. ग्रामीण समाजशास्त्र (Rural Sociology)
व्याख्या:
ग्रामीण समाजशास्त्र गाँवों और ग्रामीण समाज के सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक पहलुओं का अध्ययन करता है। यह समाज में ग्रामीण जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे परिवार, कृषि, शिक्षा, और समस्याओं का विश्लेषण करता है।
महत्वपूर्ण प्रश्न:
- ग्रामीण समाज में परिवार की भूमिका क्या है?
- उत्तर: ग्रामीण समाज में परिवार समाज की बुनियादी इकाई होती है। यह व्यक्तिगत विकास, समाजीकरण और जीवन के आवश्यक संसाधनों का प्रदान करने का काम करता है।
- ग्रामीण समाज में सामाजिक समस्याओं की पहचान करें।
- उत्तर: ग्रामीण समाज में सामाजिक समस्याएँ जैसे गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा की कमी, और भूमि विवाद प्रमुख समस्याएँ हैं।
ये नोट्स और महत्वपूर्ण प्रश्न B.A. Sociology Semester 3 की परीक्षा में आपकी तैयारी को सुदृढ़ करेंगे। इन्हें समझकर और अभ्यास करके आप बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।